#CAA देश में चल रहे विरोधों से जूझ रही मोदी सरकार के लिए बुधवार और गुरुवार का दिन अग्निपरीक्षा के समान होगा। दरअसल, यूरोपियन यूनियन की संसद में CAA के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया है। यूरोपियन यूनियन की संसद ने न केवल बहस के लिए बल्कि भारत के खिलाफ लाये गये इस प्रस्ताव पर मतदान के लिए भी स्वीकार कर लिया है।
सीएए पर देश में चल रहे विरोधों से जूझ रही मोदी सरकार के लिए बुधवार और गुरुवार का दिन अग्निपरीक्षा के समान होगा। दरअसल, यूरोपियन यूनियन की संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया है। यूरोपियन यूनियन की संसद ने न केवल बहस के लिए बल्कि भारत के खिलाफ लाये गये इस प्रस्ताव पर मतदान के लिए भी स्वीकार कर लिया हैसंसद में इस सप्ताह की शुरुआत में यूरोपियन यूनाइटेड लेफ्ट-नॉर्डिक ग्रीन लेफ्ट (जीयूई-एनजीएल) समूह ने प्रस्ताव पेश किया था जिस पर बुधवार को बहस होगी और इसके एक दिन बाद मतदान होगा।
भारत को उम्मीद है कि सीएए पर यूरोपीय संघ के मसौदा प्रस्ताव के समर्थक और प्रायोजक तथ्यों के पूर्ण आकलन के लिए भारत के साथ वार्ता करेंगे। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है। इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी संयुक्त कार्य योजना और मानवाधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है।
प्रस्ताव में भारत से अपील की गई है कि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ ‘रचनात्मक बातचीत’ हो और ‘भेदभावपूर्ण सीएए’ को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार किया जाए। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।’
सीएए भारत में पिछले साल दिसंबर में लागू किया गया था जिसको लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है। केरल, पंजाब और राजस्थान की विधानसभाओं में भी इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास किया गया है।