कौशाम्बी हत्या का नाम सुनते ही लोगो की रूह कांप जाती है हत्या जघन्य से जघन्यतम अपराध की श्रेणी में है लेकिन हत्या के अपराध को कानून में परिभाषित करते हुए आईपीसी की धाराओं में अलग-अलग दंड का प्रावधान किया गया है आखिर हत्या जैसे जघन्यतम अपराध में हत्या के दोषियों को दण्ड देने के समय परिभाषित कर अलग-अलग दंड देने का क्या मकसद है हत्या करने वाले ने किस उद्देश्य से हत्या की है लेकिन वह हत्यारा है और हत्यारे को कठोरतम दण्ड दिया जाना ही न्याय समाज हित में है जिससे हत्या जैसे जघन्य अपराध करने का दुस्साहस दूसरे लोग ना कर सके और हत्या का अपराध करने के पहले लोगों की रूह कांप जाए एक तरफ आईपीसी की धारा 302 में हत्या के बाद कम से कम आजीवन कारावास और अधिकतम मृत्यु दंड दिए जाने का प्रावधान है वही दहेज हत्या आईपीसी की धारा 304 में अधिकतम 10 वर्ष दंड दिए जाने का नियम बनाया गया है आखिर दहेज के लालची लोगों द्वारा दहेज की डिमाण्ड ना पूरी होने पर विवाहिता की हत्या किए जाने का आरोप साबित होने के बाद विवाहिता के हत्यारे को आखिर मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा दिए जाने का प्रावधान कानून में क्यों नहीं बनाया जा रहा है