इलेक्टोरल बॉन्ड इसलिए लाए गए थे ताकि भारत के सियासी दलों के पैसे जुटाने के संदेहास्पद तौर-तरीक़ों में सुधार लाया जा सके. मगर हुआ इसके उलट. आज चुनावी बॉन्ड को ‘लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वाला’ बताकर इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है.
भारत में चुनावी चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड 2018 में लाए गए थे. ये बॉन्ड तयशुदा समय के लिए जारी किए जाते हैं जिन पर ब्याज नहीं मिलता. ये बॉन्ड एक हज़ार रुपए से लेकर एक करोड़ रुपए तक की तय रक़म की शक्ल में जारी किए जा सकते हैं. इन्हें साल में एक बार तय समय-सीमा के भीतर कुछ ख़ास सरकारी बैंकों से ख़रीदा जा सकता है.
भारत के आम नागरिकों और कंपनियों को ये इजाज़त है कि वो ये बॉन्ड ख़रीदकर सियासी पार्टियों को चंदे के रूप में दे सकते हैं. दान मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक दलों को इन्हें भुनाना होता है. इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए केवल वही सियासी दल चंदा हासिल करने के हक़दार हैं जो रजिस्टर्ड हैं और जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभाओं के चुनाव में कम से कम एक फ़ीसद वोट हासिल किया हो.