घर पहुँचने की चाह में शहर से पैदल ही निकल रहे लोग
मां की याद आई तो चल पड़े बोरिया बिस्तर बांधकर
पैसे कमाने और पेट चलाने चक्कर मे घर से बाहर दूसरे
प्रदेश को पहुँचे कामगारों के लिए आज मुश्किल की घड़ी आ पहुँची है,सोंचा था चार पैसा कमाएंगे 1 खाएंगें एक बचाएंगे दो घर को भेजेंगे,पर क्या पता थी कि किस्मत ऐसे पलटेगी की दाने दाने को मोहताज हो जाएंगे,
बताते चलें कि कोरोना महामारी के चलते आज देश की विभिन्न राज्यों में हड़कंप मच गया, देखते ही देखते इस महामारी ने विकट रूप धारण कर लिया, सरकार ने इससे बचाव के लिए पहले जनता कर्फ्यू फिर 21 दिनों का लॉकडाउन् घोसित किया,हालांकि इन 21 दिनों में जनता को इतनी मुश्किलों का सामना नही करना पड़ा, जैसे तैसे कमाए हुए पैसे खर्च करते गये, राज्य सरकारों ने अपने राज्यों के बाहर फंसे हुए सभी मजदूरों के लिए वहां की राज्य सरकारों से उनकी खाने पीने की सुविधा के बारे बातचीत भी की,पर वो भी बहुत ज्यादा असर दार साबित नही हुवा, मामला यहीं नही थमा 21 दिनों का लॉकडाउन खत्म होने को था लोगो के मन मे खुसी थी कि जैसे ही 21 दिन पूरे हो जाएंगे हम अपने प्रदेश अपने घर पहुँच जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी होता नही दिखा, महामारी के बढ़ते प्रोकप ने,जैसे ही 19 दिनों का लॉकडाउन फिर बढ़ाया तो इस बार जनता में खलभली मच गई,मचती क्यों न अब जेब मे पैसे भी नही बचे ,राशन भी खत्म अब क्या करें,मजदूरों के लिए ये एक बड़ा विषय बन गया, सरकार द्वारा मुहैया कराया जाने वाला राशन किसी को मिलता किसी को नही मिलता, तो चिंताएं और बढ़ती चली जा रही, घर मे फोन किया कि बाबू जी कुछ पैसे भेज दो तो तो कुछ का तो इंतजाम हुवा कुछ ने ये कहा कि बेटा अभी अनाज घर नही आया, जो पैसे थे मुन्ने की दवा में खर्च हो गये,अजब अनाज बिकेगा तो कुछ पैसे भेज देंगे,जब कोई उपाय नही ,हुवा तो अब आव सूझा न ताव उठाया बोरिया बिस्तर चले पड़े अपने शहर की ओर घर पहुँचने की चाह में कोई साइकिल तो कोई पैदल ही चल पड़ा, छोटे छोटे मासूम बच्चों को गोद मे लिये, निकल पड़े, हाल ही में गैर राज्य से अपने राज्य जा रहे एक युवक रास्ते मे ही दम तोड़ दिया था, रास्ता इतना लंबा की महीनों लग जाएं घर पहुँचने में लेकिन खाली पेट और घर की याद ने सब कुछ भुला दिया, के
रास्ते मे कुछ मददगारों ने भोजन पानी भी कराया, फिर भी कुछ तो घर पहुँचे कुछ ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया, मुम्बई में फंसे विनोद,मनोज,कृष्ण कुमार,वही सूरत शहर में फंसे पंकज सिंह, शिवकांत,गजेंद्र, विजयदत्त, ने बताया कि हर लॉकडाउन खुलने के बाद हम सबके मन मे यही होता है कि अब घर जाएंगे,
हर बार उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है, मां की याद ने अब तो अब बेचैन कर दिया है,अब तो बस अपना गांव ही नजर आ रहा है, रोके से कदम नही रुक रहे,चिलचिलाती धूप में जिंदगी का सफर कही मौत का सफर न बन जाये इस बात से अनजान हजारों की संख्या में मजदूर पैदल ही निकल पड़े,
सरकार हर रोज नई नई गाइड लाइन जारी कर रही है, जैसे ही कोई सूचना मिलती है तो मन खुश हो जाता है,लेकिन अगर कुछ दिनों में व्यवस्था न हुई तो फिर मन कुंठित हो जाता है,
हकीकत जानने के लिए जब हमारी टीम गांव गांव घूमी तो कई जगह पता चला कि कुछ लोग अपनी बूढ़ी माँ का सहारा थे, जिनको कमा के खिलाने वाला उनका एकलौता चिराग आज लॉक डाउन के चलते दूसरे प्रदेश में फंस जाने से बहुत परेसानी हो रही है,
कुछ कमा के भेज देता था अब वो खुद परेसान हैं,
एक दिन फोन किया था कि माता जी कुछ पैसे भेज दो यहाँ पैसे खत्म हो गये तो हमने दूसरे से उधार लेकर पैसे भेजे हैं, अब तो ऊपर वाला ही मालिक है हम दोनों का, हर गांव में मजदूरों के परिवार वालो ने अपना अपना दर्द बयां किया,
अब देखना है कि सरकार कब तक मजदूरों को उनके घर तक पहुँचा पाती है,