कोरोना महामारी से सीख लेते हुए भारत ह्यूमन मेटान्यूमो (एचएमपी) वायरस को लेकर पूरी तरह सतर्क है। केंद्र सरकार के निर्देश पर चार राज्यों के वैज्ञानिक वायरस के म्यूटेशन का पता लगाने में जुट गई है। टीम में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अलावा महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के वैज्ञानिक शामिल हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव की अध्यक्षता में सोमवार को हुई राज्यों के साथ उच्चस्तरीय बैठक में एचएमपी वायरस के म्यूटेशन को लेकर सवाल पूछे गए थे कि क्या वायरस के दो जीनोटाइप ए और बी हैं। इनमें दो-दो उप वंश भी हैं, जिन्हें ए1, ए2 और बी1, बी2 का नाम दिया है। पिछले कुछ दिनों में भारत में मिले मरीज इनमें से किस स्वरूप से संक्रमित हैं? सूत्रों के मुताबिक, बैठक में वैज्ञानिकों ने कहा है कि एचएमपीवी भारत में कई वर्षों से है। अभी चीन और दुनिया के कई और हिस्सों में इसका प्रसार देखा जा रहा है। हालांकि, यह वायरस के पुराने स्वरूप का प्रसार है या फिर उसमें कोई म्यूटेशन हुआ है? इसके बारे में अभी जानकारी मौजूद नहीं है और इसके साक्ष्य भी बहुत कम हैं।

वायरस की आइसोलेशन प्रक्रिया शुरू
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि राज्यों की बैठक के बाद पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने मौजूदा संक्रमित मरीजों के नमूनों पर शोध करने का फैसला लिया। उनकी बीएसएल 3 स्तर की प्रयोगशाला में इन वायरस के आइसोलेशन की प्रक्रिया शुरू हुई है। करीब एक से दो सप्ताह में आइसोलेशन यानी वायरस पृथक होने के बाद उसके मौजूदा स्वरूप की तुलना पहले से उपलब्ध जीनोम के साथ होगी। इस तरह तीन से चार सप्ताह में एचएमपी वायरस ने म्यूटेशन किया है या नहीं, इसके बारे में भारत के पास सभी साक्ष्य होंगे। एनआईवी पुणे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि म्यूटेशन का पता लगाने के लिए अभी साक्ष्य बहुत सीमित, लेकिन जल्द कामयाबी मिलेगी। उन्होंने बताया कि कर्नाटक और तमिलनाडु में संक्रमित मिले मरीजों के नमूनों पर काम शुरू किया है।
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