मोहम्मद अहमद की एक खास रिपोर्ट .इस्लामिक नया साल मुहर्रम माह की पहली तारीख से शुरू हो चुका है, लेकिन इस इंसानियत के लिए शहीद हुए हुसैन, पानी को तरसते बच्चों पर बरसाए गए थे तीर, ऐसी थी ‘कर्बला की जंग.
इस्लामिक नया साल मुहर्रम माह की पहली तारीख से शुरू हो चुका है, लेकिन इसके बाद भी मुस्लिम जश्न नहीं मनाते. मुहर्रम की दसवीं तारीख दुनिया भर के मुस्लिमों के लिए गम लेकर आती है. मुहर्रम (हिजरी) का महीना इस्लामी इतिहास के ऐसे हिस्से की याद ताजा कर देता है, जो पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए मातम की वजह होता है. आज मुहर्रम की दसवीं तारीख है. यही वो महीना और दिन है जब इस्लाम के प्रवर्तक पैगंबर मोहम्मद के नाती हजरत हुसैन अपने परिवार और 72 साथियों के कर्बला की जंग में शहीद हो गए थे. ये एक ऐसी जंग थी, जिसमें यजीद की हजारों की सेना के सामने हारना तय तो था, लेकिन इसके बाद भी हजरत इमाम हुसैन ने घुटने नहीं टेके. और वह इस्लाम, अच्छाई व इंसानियत के लिए शहीद हो गए. इमाम हुसैन की पैदाइश 626 में मदीना की है. वह अली इब्ने तालिब व फ़ातिमा ज़हरा के दूसरे बेटे थे. पहले बेटे हसन थे. दोनों ही इस्लाम के प्रवर्तक पैगंबर मुहम्मद को बेहद प्यारे थे. पिता अली इब्न के बाद उनके पहले बेटे हसन का खलीफा बनना तय था, लेकिन हसन को जहर देकर शहीद कर दिया गया. खलीफा मुआविया की मौत के हुकूमत उनके बेटे यजीद को मिल गई. यजीद बड़ा जालिम था. यजीद ने हुकूमत मिलते ही इमाम हुसैन को अधीनता स्वीकार करने को कहा, लेकिन हुसैन ने इनकार कर दिया. यजीद अल्लाह को नहीं मानता था. वह खुद को खुदा समझता था. यजीद चाहता था कि अगर हुसैन उसके अधीन आए तो इस्लाम उसके अधीन हो जाएगा.
आपको बता दें मैदान ए कर्बला में दस मुहर्रम को यजीदी लश्कर ने नवासा ए रसूल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया था। उस जुल्म को याद करके शिया और सुन्नी दोनों ही समुदाय के लोगों की आंखें नम हो जाती है । मुहर्रम को मस्जिदों में जिक्र ए कर्बला होता है तो इमामबाड़ों में मजलिस। मुहल्ले मुहल्ले तख्त के जुलूस उठाए जाते हैं। घरों पर नज्र नियाज दिलाई जाते हैं। मोहम्मद अहमद क्राइम चीफ ब्यूरो कौशांबी.