जिले से हर सियासी कॅरियर का आगाज करने वाले अखिलेश यादव ने 15 साल बाद यहां चुनाव वाले दिन भी आकर सियासी गंभीरता दिखाई। देखना है कि जनता ने उनके इस कदम पर कितना भरोसा जताया है। वहीं, सपा मुखिया अखिलेश यादव से दूसरी बार टकरा रहे भाजपा सांसद सुब्रत पाठक पर भी सभी की निगाहें लगी हैं।

जिस पिता ने अब से 24 साल पहले कन्नौज शहर के बोर्डिंग ग्राउंड की सभा में हाथ उठाकर अखिलेश यादव को नेता बनाने की अपील की थी, वह इस बार नहीं हैं। उनके निधन के बाद फिर से कन्नौज से अपनी दूसरी सियासी पारी का आगाज करने के लिए किस्मत आजमा रहे सपा मुखिया अखिलेश यादव को आज अग्नि परीक्षा से गुजरना होगा।
उन्हें न सिर्फ खुद की सीट पर पार्टी को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी है, बल्कि परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ ही पार्टी को भी कामयाब बनाना है। मंगलवार को आने वाले चुनावी नतीजे अखिलेश यादव की उम्मीदवारी के साथ ही पार्टी मुखिया के कद को भी तय करेंगे। सभी की निगाहें उन पर लगी होंगी।
अलग-अलग अंदाज में प्रचार कर बनाया माहौल
2009 में आखिरी बार यहां से जीते थे। अब वह 15 साल बाद चुनाव वाले दिन भी यहां आकर सियासी गंभीरता दिखाई। देखना है कि जनता ने उनके इस कदम पर कितना भरोसा जताया है। मैदान में उतरने के बाद यहां उन्होंने अलग-अलग अंदाज में प्रचार कर माहौल तो बनाया, चुताया है, यह मंगलवार को तय होगा।
इनको कामयाब बनाने का भी दारोमदार है
अखिलेश यादव को खुद अपनी सीट के अलावा मैनपुरी से पत्नी डिंपल यादव, फिरोजाबाद से भाई अक्षय यादव, बदायूं से भाई आदित्य यादव और आजमगढ़ से भाई धर्मेंद्र यादव को कामयाब बनाने का भी दारोमदार है।
सियासी रुतबे का होगा अंदाजा
मंगलवार को इन सीटों के नतीजे से भी उनके सियासी रुतबे का अंदाजा होगा। इसके अलावा देश-प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा से आमने-सामने की टक्कर में वह कितने दमदार साबित हुए हैं, यह उनकी पार्टी को मिले समर्थन से तय होगा। ऐसे में सभी की निगाहें उन पर ही लगी हैं।
सुब्रत की कामयाबी पर सभी की नजर
सपा मुखिया अखिलेश यादव से दूसरी बार टकरा रहे भाजपा सांसद सुब्रत पाठक पर भी सभी की निगाहें लगी हैं। अपनी तीसरी कोशिश में पिछली बार पहली कामयाबी हासिल करने वाले सुब्रत पाठक चौथी बार मैदान में हैं।
भाजपा के बड़े नेता भी लगातार फीडबैक ले रहे
वह 2009 के अपने पहले चुनाव में अखिलेश यादव के सामने मैदान में उतरे थे। तब से लगातार पार्टी उन्हें मौका दे रही है। पिछली बार मिली कामयाबी को इस बार बरकरार रखने में वह कामयाब होते हैं या नहीं, इस पर सभी की निगाह लगी है। भाजपा के बड़े नेता भी लगातार फीडबैक ले रहे हैं।
इमरान के भरोसे पहली जीत की तलाश में बसपा
वर्ष 1997 में कन्नौज को फर्रुखाबाद से अलग करके नया जिला बनाने वाली बसपा को यहां पहली जीत की तलाश है। वर्ष 2014 से पहले के चुनाव में बसपा यहां सपा को कड़ी टक्कर देती रही है, लेकिन जीत की दहलीज से पहले ही उसके कदम ठिठकते रहे हैं।
16 चुनाव में बसपा को कभी भी जीत नहीं मिली
ऐसे में इस बार पार्टी ने कानपुर के निवासी कारोबारी इमरान बिन जफर को मैदान में उतार कर मुस्लिम कार्ड खेला है। अब तक इस सीट पर हुए 16 चुनाव में बसपा को कभी भी जीत नहीं मिली है। इस बार कितना दम लगाया है, यह देखने वाली बात होगी।