बहराइच के महराजगंज कस्बे में बीते रविवार को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा के दौरान पथराव के बाद रेहुवा निवासी रामगोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हिंसा की यह आग धीरे-धीरे पूरे जिले में फैली। लोगों के घर जले। रिश्ते झुलसे। तपिश सद्भाव तक भी पहुंची। चार दिनों तक जनजीवन प्रभावित रहा। लोग घरों में कैद रहे। आज से 41 वर्ष पहले भी कुछ ऐसा ही हुआ था।
संयोग से महीना भी अक्तूबर ही था। तब दो समुदायों के बीच जमीन के एक हिस्से को लेकर खूनी संघर्ष हुआ था। दंगे में दो लोगों की जान गई और करीब 19 घायल हुए। इनमें आम जनता के साथ ड्यूटी पर मुस्तैद तीन पुलिस जवान भी घायल हुए थे।
पंचायत की तैयारी और पथराव
25 अक्तूबर 1983 की सुबह बाकी दिनों से कुछ अलग थी। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी विवाद सुलझाने के लिए दोनों समुदायों के लोगों के साथ ब्रह्मपुरी मोहल्ले में बैठक करने पहुंचे थे।
सुलह की कवायद शुरू होने से पहले ही एक व्यक्ति ने लोगों को भड़काकर अधिकारियों पर पथराव शुरू करा दिया। पुलिस ने किसी तरह से अधिकारियों को मौके से सुरक्षित निकाला।
पुलिस पर तमंचों से फायरिंग, जवाबी कार्रवाई में दो हुए थे ढेर
भीड़ मोहल्ले के ही एक वकील के घर जमा हो गई। नारेबाजी के बाद पथराव शुरू हो गया। पुलिस पहुंची तो उत्तेजित लोगों ने तमंचों से फायरिंग शुरू कर दी। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने जवाबी फायरिंग की, जिसमें दो व्यक्तियों की मौत हो गई।
बाद में पुलिस ने वकील को भी गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद करीब 15 दिनों तक जगह-जगह हिंसा और आगजनी होती रही। मामला बढ़ता देख फैजाबाद रेंज के तत्कालीन डीआईजी ने मोर्चा संभाला और फिर कर्फ्यू लगा दिया गया।
1975 से चल रहा था विवाद
दो समुदायों में जमीन को लेकर विवाद करीब 1975 से चल रहा था। इस बीच अक्तूबर 1985 में जमीन के एक हिस्से में बनी मस्जिद पर निर्माण शुरू करा दिया गया। इसपर दूसरे पक्ष ने अदालत से स्थगन आदेश ले लिया। दूसरे पक्ष ने विवादित भूमि में बने कुएं के पास शिवलिंग की स्थापना कर दी। इसपर प्रशासन ने संबंधित भूमि को कुर्क कर दिया। लेकिन विवाद नहीं थमा। इसपर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों ने दोनों समुदायों के वरिष्ठ लोगों से बातचीत कर सुलह का प्रयास किया। लेकिन यह संभव नहीं हो सका।
क्या है पूरा मामला
बहराइच की महसी तहसील के महराजगंज कस्बे में बीते रविवार शाम को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन शोभायात्रा में गाने को लेकर हुए विवाद के बाद दूसरे समुदाय के युवकों ने पथराव शुरू कर दिया। इससे दुर्गा प्रतिमा खंडित होने पर पूजा समिति के सदस्यों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया तो दूसरे समुदाय के लोगों ने रामगोपाल मिश्रा (24) की हत्या कर दी।
घटना का पूरे जिले में विरोध शुरू हो गया था। विसर्जन कमेटी के लोगों ने बहराइच-सीतापुर हाईवे पर चहलारी घाट पुल के पास जाम लगा प्रदर्शन शुरू कर दिया। बहराइच-लखनऊ हाईवे भी जाम कर दिया गया। पुलिस-प्रशासन की नाकामी से ही बहराइच में हिंसा भड़की। प्रतिमा विसर्जन के दिन सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे।
हिंसा होने का कोई भी इनपुट नहीं था। हैरानी यह है कि सोमवार को दूसरे दिन भी सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम करने में अफसर नाकाम साबित हुए। इसलिए दूसरे दिन बवाल, तोड़फोड़ और आगजनी हुई। पूरे मामले में पुलिस का खूफिया तंत्र फेल रहा। शहर में हर साल प्रतिमा विसर्जन होता है, जिसमें डीजे के साथ शोभायात्रा निकाली जाती है। ऐसे में पुलिस अफसरों की जिम्मेदारी थी कि वह सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करते। क्योंकि यात्रा का रूट पहले से ही तय होता है। लेकिन, बहराइच पुलिस और प्रशासन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया।
यही वजह है कि जब बवाल शुरू हुआ तो पुलिस बल नाकाफी साबित हुआ। उपद्रवी हावी हो गए। उन्होंने जो चाहा वही किया। गोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी।
हिंसा में कुल 13 मुकदमें दर्ज
हिंसा मामलें में कुल 12 मुकदमें दर्ज हुए थे, जिसमें से दस हरदी थाना में थे। इनमें 62 आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है, वहीं बृहस्पतिवार को पुलिस पर फायर कर भागने के मामले में नानपारा कोतवाली में दो आरोपियों पर जानलेवा हमला सहित अन्य धाराओं में केस दर्ज किया गया है। इससे अब कुल मुकदमों की संख्या 13 हो गई है।
बहराइच की महसी तहसील की महाराजगंज हिंसा के मुख्य आरोपियों को नानपारा के हांडा बसेहरी नहर के पास पुलिस मुठभेड़ में मोहम्मद तालीम उर्फ शब्बू और सरफराज उर्फ रिंकू के पुलिस मुठभेड़ में घायल होने के बाद मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया था। वहीं तीन अन्य आरोपियों अब्दुल हमीद, फहीम और मोहम्मद अफजल को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। शुक्रवार को सीजेएम आवास पर आरोपियों की पेशी होने के बाद पांचों आरोपियों को आरआरएफ पीएसी और पुलिस की कड़ी सुरक्षा मे 14 दिन की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया।