नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की शीर्ष संगठनात्मक संस्था, संसदीय बोर्ड में बदलाव के मायने निकाले जा रहे हैं। इसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) को जगह नहीं मिली। इस घटनाक्रम ने खूब सुर्खियां बटोरीं। हालांकि, भाजपा के अनुसार, उसने इसे सामाजिक और क्षेत्रीय रूप से अधिक प्रतिनिधित्व वाला बना दिया है।

भाजपा की निगाहें 2024 के लोकसभा चुनावों पर टिकी हैं और इसी के मद्देनजर वह संगठनात्मक मुद्दों एवं उभरती राजनीतिक चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी कई प्रदेश इकाइयों में अहम पदों पर बदलाव जारी रख सकती है। पहली बार, गैर-उच्च जातियां बोर्ड में बहुमत में हैं, क्योंकि पार्टी समाज के पारंपरिक रूप से कमजोर और पिछड़े वर्गों तक अपनी पहुंच जारी रखे हुए है।

इससे पहले, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कई राज्यों में बदलाव किए थे और अब वह अपनी उत्तर प्रदेश इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त कर सकते हैं और बिहार में कुछ नए चेहरों को ला सकते हैं, जहां जनता दल (यूनाइटेड) (जद-यू) ने अपनी पारंपरिक सहयोगी भाजपा का साथ छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल (राजद)-कांग्रेस-वाम गठबंधन से हाथ मिला लिया।